"भावना मिट जाए मन से द्वेष अत्याचार की"
द्वेष मानव का सब से बड़ा शत्रु है. द्वेष हमारे जीवन से सारी खुशी छीन लेता है. दूसरों के सुख से हम दुखी होते हैं. दूसरों को दुखी देख कर ही हम खुश हो पाते हैं. अपना सुख तो हमारे पास रहता नहीं. कुछ व्यक्तियों को तो द्वेष इस हद तक प्रभावित करता है कि वह दूसरों को दुःख पहुँचने के लिए स्वयं को ही दुःख पहुँचने से नहीं हिचकिचाते.
द्वेष से प्रभावित व्यक्ति में अत्याचार की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है. दूसरों से उन का सुख छीनना ही उस के जीवन का उद्देश्य बन जाता है. वह हर समय इसी जोड़-तोड़ में लगा रहता है कि कैसे दूसरों का सुख छीना जाए या दूसरों को दुःख पहुँचाया जाए. धीरे-धीरे ऐसे व्यक्ति का सोच इतना बिगड़ जाता है कि वह दूसरों कि हत्या तक कर देता है.
अगर हम चाहते हैं कि हमारे जीवन में सुख बना रहे और उस में लगातार वृद्धि होती रहे तब हमें द्वेष को अपने जीवन में आने से रोकना होगा. हम सुख पाना चाहते हैं तब दूसरों को सुख देना होगा. हम जैसा बोएँगे वैसा ही काटेंगे. यह ईश्वर का नियम है.
हर इंसान चाहता है उस का जीवन सुखी हो. इस के लिए वह सारे प्रयत्न करता है. कुछ सफल होते हैं. कुछ नहीं. फ़िर लोगों की अपनी अलग परिभाषाएं हैं सुखी जीवन की. कुछ लोग थोड़ा पाकर भी खुश हो जाते हैं. कुछ लोग बहुत कुछ पाकर भी खुश नहीं होते. आईये इस ब्लाग में इस पर चर्चा करें.
दुःख का अनुभव किए बिना सुख का महत्व पता नहीं चलता. इस लिए दुःख से घबराना नहीं चाहिए. दुःख से सीखना चाहिए. समस्याओं के प्रति सकारात्मक द्रष्टिकोण रखने से अनेक समस्याएं आसानी से हल हो जाती हैं. मनुष्य को प्रकृति से सीखना चाहिए, उस से मुकाबला नहीं करना चाहिए. प्रकृति के नियमों का अनुसरण करके सुखी जीवन जिया जा सकता है.
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सुखी जीवन का रहस्य
दूसरों के सुख में सुखी होंगे तो आपका अपना जीवन सुखी होगा
2 comments:
सत्य वचन
इस तरह अच्छी बाते पढने सुनने पर हर बार हौसला मिलता है
प्रशंसनीय. हर कोई सुखी जीवन की तलाश में है...आपको पढ़कर...शांती की बहुतियात मिल, दुआ करते हैं...कुछ अपने साथ लजाते हुए. बहुत-बहुत शुक्रिया.
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उल्टा तीर
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