दुःख का अनुभव किए बिना सुख का महत्व पता नहीं चलता. इस लिए दुःख से घबराना नहीं चाहिए. दुःख से सीखना चाहिए. समस्याओं के प्रति सकारात्मक द्रष्टिकोण रखने से अनेक समस्याएं आसानी से हल हो जाती हैं. मनुष्य को प्रकृति से सीखना चाहिए, उस से मुकाबला नहीं करना चाहिए. प्रकृति के नियमों का अनुसरण करके सुखी जीवन जिया जा सकता है.

Sunday, December 31, 2006

सुखी जीवन के मन्त्र - २

"वायु, जल सर्वत्र हों शुभ गंध को धारण किए"

शुद्ध वायु और जल, सुखी जीवन के लिए जरूरी हैं. वायु और जल में किसी प्रकार की अशुद्धता हमारे जीवन को दुःख से भर देती है. आज उन्नत तकनीकों का प्रयोग करके भी पूर्ण रूप से शुदध वायु या जल हमें उपलब्ध नहीं हो पाता. इस के लिए हम स्वयं ही दोषी हैं. प्रकृति ने हमें शुद्ध वायु और जल प्रदान किया, पर हमने अपने अंहकार में उसे दूषित कर दिया. हमारे दैनिक जीवन का हर कार्य वायु और जल को दूषित करता है. इस जीव जगत में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो पर्यावरण को दूषित करता है. दूषित पर्यावरण आज मानव जाति के लिए सब से बड़ा खतरा बन गया है.

जब भी हम हवन करते हैं, उपरोक्त प्रार्थना करते हैं. हमारा जीवन सुखी हो और उस के लिए हम जिन बस्तुओं की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं, उन में शुदध वायु और जल भी शामिल हैं. पर हमारी यह प्रार्थना बस हवन का एक अंग बन कर रह गई है. हमारे दैनिक जीवन में इस का कहीं कोई प्रभाव नजर नहीं आता. हमारे ऋषि-मुनिओं ने स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण के महत्त्व को समझा. उन्होंने इस को प्रार्थनाओं में शामिल किया जिस से हमें यह याद रहे और हम ऐसे कार्यों से बचें जो पर्यावरण को दूषित करते हैं. पर हम इस सब की कोई परवाह नहीं करते और रोज नए तरीके ईजाद करते हैं पर्यावरण को दूषित करने के लिए. हम उसी डाल को काट रहे हैं जिस पर हम बैठे हैं.

अगर हम चाहते हैं कि हमारा जीवन सुखी हो तब हमें अपनी इस प्रार्थना को अपने जीवन में उतारना होगा.

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सुखी जीवन का रहस्य

दूसरों के सुख में सुखी होंगे तो आपका अपना जीवन सुखी होगा