कुछ समय पहले मुझे एक व्यक्ति ने एक पर्चा दिया जिसका पहला वाक्य था - 'गर्व से कहो में मानव हूँ '। कुछ अजीब लगा यह पढ़ कर। कुछ और बातें जो उस पर्चे में लिखी थीं:
मानवता की रक्षा करना मेरा धर्म है।
घूस लेना कानूनी अपराध है। घूस लेने से नैतिक पतन होता है।
नैतिक पतन गुलामी का लक्षण है। नैतिक पतन से आतंक का विकास होता है। आदमी अहंकारी बन जाता है। आतंक से हत्या, बलात्कार और अपहरण में वृद्धि होती है।
भ्रष्टाचार को समाप्त कर दिल्ली को स्वर्ग बनायें।
एक व्यक्ति यह पर्चे छपवाता है और उन पर्चों को बांटता है। पर्च में यह भी आग्रह करता है कि अगर किसी को यह बात अच्छी लगे तो वह भी ऐसे पर्चे बंटबा सकते हें। इस व्यक्ति के मन में क्या भावना रही होंगी? उस ने अपना पैसा और समय खर्च किया। किसलिए? मुझे लगा कारण कोई भी रहा हो, आज भी कुछ ऐसे लोग हें जो अच्छाई के लिए काम करते रहते हें।
हम मानव हें तो मानवों की तरह रहें। आज मानव रुपी दानव बहुत ज्यादा नजर आते हें। शायद इस लिए उस ने लिखा - 'गर्व से कहो हम मानव हें'।
हर इंसान चाहता है उस का जीवन सुखी हो. इस के लिए वह सारे प्रयत्न करता है. कुछ सफल होते हैं. कुछ नहीं. फ़िर लोगों की अपनी अलग परिभाषाएं हैं सुखी जीवन की. कुछ लोग थोड़ा पाकर भी खुश हो जाते हैं. कुछ लोग बहुत कुछ पाकर भी खुश नहीं होते. आईये इस ब्लाग में इस पर चर्चा करें.
दुःख का अनुभव किए बिना सुख का महत्व पता नहीं चलता. इस लिए दुःख से घबराना नहीं चाहिए. दुःख से सीखना चाहिए. समस्याओं के प्रति सकारात्मक द्रष्टिकोण रखने से अनेक समस्याएं आसानी से हल हो जाती हैं. मनुष्य को प्रकृति से सीखना चाहिए, उस से मुकाबला नहीं करना चाहिए. प्रकृति के नियमों का अनुसरण करके सुखी जीवन जिया जा सकता है.
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