नैना देवी मन्दिर और रेल दुर्घटना दोनों टाली जा सकती थीं. यात्रियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कंपनियां आज कल अन्तर-राष्ट्रिय मानकों के अनुसार मेनेजमेंट सिस्टम्स लगाती हैं. नैना देवी मन्दिर के प्रबंधन बोर्ड और रेल मंत्रालय को यह सिस्टम्स अपने यहाँ लगाने आवश्यक थे,पर उन्होंने नहीं लगाए. इस सिस्टम्स में जितनी भी संभावित रिस्क हो सकती हैं उनका आंकलन किया जाता है और फ़िर उन्हें दूर करने के उपाय किए जाते हैं. इस मानक का नंबर है OHSAS 18001.
मैंने अपनी कई क्लाइंट कम्पनियों में यह सिस्टम्स लगाने की कंसल्टेंसी दी है. उसके बाद वहां कोई दुर्घटना नहीं हुई है. आज कल एक स्टील प्लांट में कार्य रत हूँ. मन्दिर दुर्घटना के लिए मुख्य तौर पर मन्दिर प्रवंधन और सुरक्षा एजेंसीज जिम्मेदार हैं. रेल दुर्घटना के लिए रेल मंत्रालय और रेल मंत्री जिम्मेदार हैं. यदि यह सिस्टम लगाया गया होता तो यात्रियों को इस की पूरी जानकारी दी गई होती और उन्हें किसी भी इमरजेंसी में कैसे और क्या करना है इस के लिए भी ट्रेनिंग दी गई होती.
मन्दिर प्रवंधन, सुरक्षा एजेंसीज और रेल मंत्रालय / रेल मंत्री ने अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की और इतने निर्दोष यात्रिओं की जान गई. अब इन्हें कोई सजा दे पायेगा इस में तो पूरा संदेह है. सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि सरकार और बाबुओं को तो अब भगवान् भी ठीक नहीं कर सकते.
हर इंसान चाहता है उस का जीवन सुखी हो. इस के लिए वह सारे प्रयत्न करता है. कुछ सफल होते हैं. कुछ नहीं. फ़िर लोगों की अपनी अलग परिभाषाएं हैं सुखी जीवन की. कुछ लोग थोड़ा पाकर भी खुश हो जाते हैं. कुछ लोग बहुत कुछ पाकर भी खुश नहीं होते. आईये इस ब्लाग में इस पर चर्चा करें.
दुःख का अनुभव किए बिना सुख का महत्व पता नहीं चलता. इस लिए दुःख से घबराना नहीं चाहिए. दुःख से सीखना चाहिए. समस्याओं के प्रति सकारात्मक द्रष्टिकोण रखने से अनेक समस्याएं आसानी से हल हो जाती हैं. मनुष्य को प्रकृति से सीखना चाहिए, उस से मुकाबला नहीं करना चाहिए. प्रकृति के नियमों का अनुसरण करके सुखी जीवन जिया जा सकता है.
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