दुःख का अनुभव किए बिना सुख का महत्व पता नहीं चलता. इस लिए दुःख से घबराना नहीं चाहिए. दुःख से सीखना चाहिए. समस्याओं के प्रति सकारात्मक द्रष्टिकोण रखने से अनेक समस्याएं आसानी से हल हो जाती हैं. मनुष्य को प्रकृति से सीखना चाहिए, उस से मुकाबला नहीं करना चाहिए. प्रकृति के नियमों का अनुसरण करके सुखी जीवन जिया जा सकता है.

Tuesday, August 26, 2008

चाय, समोसा और उस की हँसी

गोरा रंग, बड़ी बड़ी आँखें, खिलखिलाती हुई हँसी, बस इतना ही जान पाया उस के बारे मैं. यह तब की बात है जब मैं डिफेन्स रिसर्च में काम करता था. हैदराबाद से ट्रांसफर होकर दिल्ली आया था. साऊथ ब्लाक के पास था मेरा आफिस. मैं अपने नए बने साथियों के साथ चाय पीने जहाँ आता था, वह भी अपनी सहेलिओं के साथ वहां चाय पीने आती थी. एक दिन पास की मेज से खिलखिलाने की आवाज आई तब मैंने उसे पहली बार देखा. इतनी मुक्त हँसी मैंने जीवन में पहली बार देखी थी और सुनी थी. उस दिन समोसे और चाय, दोनों ही बहुत स्वादिष्ट लगे. फ़िर तो एक क्रम सा बन गया. समोसे और चाय और उसकी हँसी. समोसे और चाय के पैसे लगते थे पर हँसी फ्री में मिलती थी. समोसे और चाय में मिलाबट होती थी पर उसकी हँसी सुबह की ओस जैसी साफ़ और पवित्र.

फ़िर एक दिन उसकी हँसी के बिना चाय पीनी पड़ी. वह थी वहां पर, पर कुछ चुप-चुप और गुम-सुम. मैंने कहा हो न हो उसकी शादी की बात चल रही है. वह हफ्ता ऐसे ही बिना हँसी के गुजर गया. नए हफ्ते में फ़िर वही खिलखिलाहट. कुछ और भी था उस हँसी में, जो उसके चेहरे की चमक से धूप-छाओं खेल रहा था. मैंने कहा हो न हो उसकी शादी की बात पक्की हो गई है. मेरे दोस्तों ने कहा मुझे उस से प्यार हो गया है. मैंने कहा नहीं यह बात नहीं है. कभी उस के बारे में कुछ और जानने की, कभी उस से बात करने की इच्छा नहीं हुई. मेरा मन बस यह चाहता था कि वह हंसती रहे और में उसे देखता रहूँ. फ़िर उस ने आना बंद कर दिया.

एक दिन अचानक फ़िर हँसी सुनाई दी. वह ही तो थी. शादी की साड़ी में लिपटी, मांग में सिन्दूर, चेहरे पर प्यार की चमक, और इन सब के साथ उस की वही खिलखिलाती हँसी. आज समोसे और चाय हर दिन से ज्यादा स्वादिष्ट थे. फ़िर धीरे-धीरे उस की हँसी और मीठी होती गई. एक दिन उस के चेहरे की चमक आँखें चौंधिया रही थी. मैंने कहा वह मां बनने वाली है. फ़िर धीरे-धीरे उसका शरीर उस के मां बनने की चुगली करने लगा. फ़िर एक लम्बी छुट्टी. हम सब उसे भूल से गए. चाय और समोसे में वह स्वाद नहीं रहा.

एक दिन वह हँसी फ़िर आ गई. मैंने कहा जरूर बेटी हुई है. दोस्तों ने कहा यार यह कैसे कह सकते हो? मैंने कहा कुछ है उसके चेहरे मैं और उसकी हँसी में, कभी चेहरे पर बेटी की ममता की चमक और कभी एक काली लकीर की परछाईं. मैंने कहा उस के ससुराल वाले बेटी होने से खुश नहीं हैं. धीरे-धीरे वह मुक्त हँसी मुक्त नहीं रही. मैं और मेरे दोस्त एक अजीब सा दर्द महसूस करने लगे थे. अब उस जगह चाय पीने जाने का मन नहीं करता था. फ़िर मैंने डिफेंस रिसर्च छोड़ दिया और भारतीय मानक संस्था ज्वाइन कर ली. मेरी पहली पोस्टिंग कोलकाता में हुई.

इसके बाद उस हँसी से साथ छूट गया. और छूट गया चाय के साथ समोसा. कोलकाता में खूब मिठाई खाई. आज इतने सालों बाद उस हँसी की याद आई. मन गीला हो गया. सोचा आप सबसे बांटूं वह हँसी.

4 comments:

Manvinder said...

bahut achchi si sunder si kahaani hai....

डॉ .अनुराग said...

बहुत कुछ कह गये आप सर जी.....

Anonymous said...

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