दुःख का अनुभव किए बिना सुख का महत्व पता नहीं चलता. इस लिए दुःख से घबराना नहीं चाहिए. दुःख से सीखना चाहिए. समस्याओं के प्रति सकारात्मक द्रष्टिकोण रखने से अनेक समस्याएं आसानी से हल हो जाती हैं. मनुष्य को प्रकृति से सीखना चाहिए, उस से मुकाबला नहीं करना चाहिए. प्रकृति के नियमों का अनुसरण करके सुखी जीवन जिया जा सकता है.

Thursday, September 25, 2008

क्या कोई चाहता है दुखी होना?

नहीं, कोई यह नहीं चाहता कि वह दुखी हो. सब चाहते हैं कि उनका जीवन सुखी हो. पर कुछ लोग अपना जीवन सुखी करने के लिए दूसरों का जीवन दुखी कर देते हैं. आज सुबह पार्क में एक सज्जन बता रहे थे कि उनके अपने बेटे ने उनका जीवन दुखी कर रखा है. वह विधुर हैं. उनकी पत्नी का स्वर्गवास कुछ वर्ष पहले हो गया. दो बेटे हैं. बड़े बेटे ने अपना मकान अलग बना लिया है. छोटा बेटा उनके मकान में रहता है. सारे मकान पर उस ने अपना कब्जा कर रखा है. यह सज्जन ग्राउंड फ्लोर पर एक कमरे में रहते हैं. अब उनका बेटा चाहता है कि वह यह कमरा भी खाली कर दें, जिस से वह वहां एक दूकान खोल सके. वह कहाँ जायेंगे इस से उसे कोई मतलब नहीं है. उस की पत्नी और बच्चे भी इन सज्जन से बुरा व्यवहार करते हैं. अब यदि एक बेटा अपने पिता से ऐसा व्यवहार कर सकता है तो दूसरों का क्या कहा जा सकता है.

मेरे एक और जानकार हैं. वह मेरी एक क्लाइंट कम्पनी में काम करते हैं. सत्तर वर्ष से ऊपर उनकी आयु है. यह नौकरी उनको मजबूरी में करनी पड़ी है. दो बेटियाँ हैं उनकी. कोई बेटा नहीं है. दोनों बेटियों की शादी कर दी. पर बड़ी बेटी विधवा हो गई. ससुराल वालों ने उस पर इतना अत्त्याचार किया कि वह दिमागी तौर पर पागल हो गई. उसे और उसकी दो बेटियों को घर से बाहर निकाल दिया. बेचारी अपने पिता के घर आ गई. कभी मेरे पास बैठते हैं तो रोने लगते हैं. कहते हैं कि बेटियों की शादी के बाद वह बहुत सुखी थे. कभी सोचा भी नहीं था कि इस उमर में आकर उन्हें फ़िर भाग-दौड़ करनी पड़ेगी. एक दुःख कि बात यह भी है कि कम्पनी के मालिक उनकी इस मजबूरी का पूरा फायदा उठाते हैं. वह सबसे ज्यादा काम करते हैं पर उन्हें सबसे कम तनख्वाह मिलती है. मेरे आडिट में उनके विभाग में कभी कोई कमी नहीं मिलती. बहुत पैसे हैं कम्पनी के मालिकों के पास, पर इन को इन के काम की पूरी तनख्वाह नहीं देते. मैंने कई बार अपरोक्ष रूप से यह बात उठाई पर कोई न कोई बहाना करके टाल जाते हैं.

हमारे अपार्टमेंट्स में ऐसे कई परिवार हैं जिन्हें दूसरों को दुखी करने में ही आनंद मिलता है. यह सब पढ़े-लिखे हैं और स्वयं को दूसरों से महान साबित करने में लगे रहते हैं. पर कोई मौका नहीं चूकते दूसरों को दुखी करने का. लोग शिकायत करते हैं तो दूसरों पर दोष लगाने लगते हैं.

ऐसा भी नहीं है कि किसी के दुखी जीवन के लिए दूसरे ही जिम्मेदार हों. कुछ लोग ख़ुद ही अपने जीवन को दुखी कर लेते हैं. एक सज्जन हैं. दिन भर इधर-उधर इसकी-उसकी करेंगे. शाम को बहू की शिकायत पत्रिका खोल कर बैठ जायेंगे. थका हारा बेटा दफ्तर से आएगा और यह उसे जरा साँस भी नहीं लेने देंगे और शुरू हो जायेंगे. एक और सज्जन हैं जो सब से अपने बेटे की बुराई करते फिरते हैं. यह भी नहीं सोचते कि सब पड़ोसी उन के बेटे को अच्छी तरह जानते हैं और उसकी बहुत इज्जत करते हैं. ऐसी ही कुछ महिलायें भी हैं. अब अगर यह सब अपने दुखी जीवन का रोना रोते रहें तो क्या किया जाय, ख़ुद ही तो जिम्मेदार हैं उसके लिए.

पता नहीं क्यों कुछ लोग न ख़ुद खुश रहते हैं और न दूसरों को सुखी रहने देते हैं. अरे भाई ख़ुद भी सुखी जीवन बिताओ और दूसरों को भी सुखी जीवन बिताने दो.

प्रेम करो सबसे, नफरत न करो किसी से.

4 comments:

महेंद्र मिश्र.... said...

apke vicharo se sahamat hun . badhiya post. dhanyawad.

Abhivyakti said...

hamare jeevan ka tana bana achhe bure dono dhagon se bana hai.
sthitprgya ho jaen ! adhiktar pyala
bhara hi lagega.
sadhuvaad!

परमजीत सिहँ बाली said...

आप ने सही लिखा है। लेकिन आज ना तो किसी को समझाया जा सकता है और ना ही कोई सझनें को तैयार है।ऐसे मे कुछ समझ नही आता कि क्या करें?

राज भाटिय़ा said...

आप ने बहुत ही सच लिखा हे , यह दुनिया रंग विरंगी हे... इसे दुसरो को दुख देने मे बहुत मजा आता हे, ओर भुल जाते हे यह वक्त खुद पर भी तो आना हे... फ़िर मन्दिर मस्जिद की तरफ़ भागते हे.
धन्यवाद

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

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सुखी जीवन का रहस्य

दूसरों के सुख में सुखी होंगे तो आपका अपना जीवन सुखी होगा