आज पूरे देश में डर का माहौल है. हर आदमी डरा हुआ है. आम आदमी तो डर-डर कर जीता ही है, खास आदमी भी बिना सुरक्षा के बाहर नहीं निकलता. जितना खास आदमी, उतनी खास सुरक्षा.
लोग बाहर तो डरते ही हैं, घर के अन्दर भी डरते हैं. न जाने कौन घर में आकर मार जाए. घर से डरते-डरते बाहर निकलते हैं. घर वाले यही प्रार्थना करते रहते हैं कि सही-सलामत वापस आ जाएँ. बीच-बीच में फ़ोन करके कुशलता पूछते रहते हैं. हर आदमी का यही हाल है.
मुसलमान हिंदू से डरता है, ईसाई हिंदू से डरता है - बहुसंख्यक हमें मार डालेंगे. हिंदू आतंकवादियों से डरता है. सब मिल कर पुलिस से डरते हैं. कोई किसी पर भरोसा नहीं करता.
अब आप बताइये, क्या इस डर और अविश्वास के माहौल में जीवन सुखी हो सकता है? सुखी जीवन के लिए जरूरी है, परस्पर प्रेम, आदर और विश्वास. रोटी, कपड़ा और मकान भी जरूरी हैं सुखी जीवन के लिए पर अब ज्यादा जरूरी हैं परस्पर प्रेम, आदर और विश्वास. इन के बिना सब कुछ होते हुए भी जीवन सुखी नहीं है. इस लिए मेरे देशवासियों परस्पर प्रेम करो, एक दूसरे का आदर करो, एक दूसरे पर विश्वास करो. आज के युग में यही हे सुखी जीवन की कुंजी.
4 comments:
बिना डर से मुक्ति पाए सुखी जीवन संभव ही नहीं।
भय मानव जात की आधारभुत भावनाओं मे से एक है। भय सकारत्मक हो तो यह हमे दुर्घटनाओ से बचाता है, सुरक्षित रखता है। लेकिन यहां सज्जन लोग भयग्रस्त है, लेकिन दुर्जन भयमुक्त। देखा नही वह हरेक साल दुर्जन दर्जनो विष्फोट करते है तो भी कितने शान से रहते है। दुर्जनो के विरुद्ध किसी ने एक बम विष्फोट किया और बेचारे भगवाधारीयो सज्जनो पर आफत आ पडी। हमे भय से मुक्त होना होगा और बुराई के विरुद्ध सीधे मुकाबले मे उतरना होगा। ......... जहां रक्षक ही भक्षक बन जाए, देश का राजा ही दुष्टो की रक्षा और साधुओ पर अत्याचार करने लगे तो फिर किसी के कोख मे कृष्ण को पैदा होना हीं पडेगा।
भय-भ्रम दोनो संग चलें,समझें शाश्वत तथ्य.
भय मिटता है ज्ञान से,यह साधक का कथ्य.
है साधक का कथ्य,सत्य की करो साधना.
भारत अमर देश है,यहाँ मृत्यु का भय ना.
अमृत पीकर, दुनियाँ देखो मरती आई.
अमर हुये हम विष पाकर क्यों, समझो भाई.
आप का लेख एक दम से सही है.
धन्यवाद
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