आज समाज में चारों और विरोध और हिंसा का वातावरण है. सब जानते हैं कि सह-अस्तित्व के बिना सुखी जीवन सम्भव नहीं है, पर हम सारे वह काम करते हैं जिस से परस्पर विरोध और भय पैदा होता है. सह-अस्तित्व के दार्शनिक, व्यवहारिक और साधना पक्ष, तीनों से अधिकाँश लोग परिचित हैं पर उस पर अमल नहीं कर पाते. आइये देखें यह तीनों पक्ष क्या कहते हैं:
दार्शनिक पक्ष - प्रत्येक बस्तु में अनन्त विरोधी युगल हैं. वे सब एक साथ रहते हैं.
व्यवहार पक्ष - दो विरोधी विचार वाले एक साथ रह सकते हैं. तुम भी रहो और मैं भी रहूँ, यही बात हमारे जगत का सौन्दर्य है. इसलिए विरोधी को समाप्त करने की बात मत सोचो. सीमा का निर्धारण करो. तुम अपनी सीमा में रहो, वह अपनी सीमा में रहे. सीमा का अतिक्रमण मत करो.
साधना पक्ष - विरोध हमारी मानसिक कल्पना है. सह-अस्तित्व में वही बाधक है. यदि हम भय और घ्रणा के संवेग का परिष्कार करें तो सह-अस्तित्व की बाधा समाप्त हो सकती है. संवेग-परिष्कार के लिए सह-अस्तित्व की अनुप्रेक्षा उपयोगी है.
परस्पर प्रेम और आदर के साथ मिल-जुल कर रहने से ही सुख जीवन का आनंद लिया जा सकता है.
(लोकतंत्र - नया व्यक्ति नया-समाज से साभार)
5 comments:
बढिया पोस्ट है।सुन्दर विचार!
परस्पर प्रेम और आदर के साथ मिल-जुल कर रहने से ही सुख जीवन का आनंद लिया जा सकता है.सुंदर विचार है,आज के संदर्भ में इसकी नितांत आवश्यक्ता है!
अहिंसा और सहास्तित्व,महाप्रज्ञ-सिद्धान्त.
खुद आचरण करें नहीं, बतलाते सिद्धान्त.
बतलाते सिद्धान्त,भेद कथनी-करनी का.
ले डूबा है सारा तप इस महापुरुष का.
यह साधक था महाप्रज्ञ का आज्ञाकारी.
बात तलक ना करते, उनकी है लाचारी.
सुंदर विचार. अगर हम सब इन्हे गर्हण कर ले तो स्वर्ग यही बन जाये.
धन्यवाद
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