दुःख का अनुभव किए बिना सुख का महत्व पता नहीं चलता. इस लिए दुःख से घबराना नहीं चाहिए. दुःख से सीखना चाहिए. समस्याओं के प्रति सकारात्मक द्रष्टिकोण रखने से अनेक समस्याएं आसानी से हल हो जाती हैं. मनुष्य को प्रकृति से सीखना चाहिए, उस से मुकाबला नहीं करना चाहिए. प्रकृति के नियमों का अनुसरण करके सुखी जीवन जिया जा सकता है.

Monday, August 24, 2009

धन के संग्रह नहीं त्याग में सुख है

दो मित्र बहुत समय बाद मिले. एक मित्र सफल व्यवसाई बन गए थे. खूब धन संग्रह किया. दूसरे मित्र ने जन सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था. धन के प्रति उदासीनता ही उनका धन थी. नदी पार जंगल में घूमने गए. बहुत बातें करनी थी. अपनी सुनानी थी. दूसरे की सुननी थी.

सुनते सुनाते रात हो गई. व्यवसाई मित्र अपने धन का प्रदर्शन करते रहे और अपने मित्र को जन सेवा छोड़कर व्यवसाय में आने के लिए आमंत्रित करते रहे. अचानक ही उन्हें ध्यान आया, नदी के इस पार जंगली जानवर बहुत हैं और छिपने का कोई स्थान नहीं है. दोनों भागते हुए नदी तट पार पहुंचे. नदी पार कराने वाला नाविक दूसरे किनारे पर था और आराम करने की तैयारी कर रहा था. व्यवसाई मित्र ने उसे आवाज़ दी और कहा कि वह आकर उन्हें उस पार ले जाए. नाविक ने मना करते हुए कहा कि वह बहुत थक गया है और अब केवल आराम करेगा. व्यवसाई मित्र ने उसे कई गुना शुल्क देने का लालच दिया पर नाविक ने मना कर दिया. मित्र ने सारे रुपये जेब से निकालते हुए कहा कि वह सब रुपये उसे दे देंगे और उसके अलाबा भी पर्याप्त धन उसे देंगे. नाविक मान गया, नाव लेकर आया और उन्हें नदी के उस पार ले गया.

घर पहुँच कर व्यवसाई मित्र ने कहा, 'देखा मित्र धन में कितनी शक्ति होती है. आज अगर हमारे पास धन नहीं होता तो हम किसी जंगली जानवर के पेट में होते'.

दूसरे मित्र ने सहमति प्रकट करते हुए कहा, 'तुमने सही कहा मित्र, धन में बहुत शक्ति होती है, पर तुम एक बात नजर अंदाज कर रहे हो, हमारी जान तब बची जब तुमने धन नाविक को दे दिया. धन के संग्रह ने नहीं, धन के त्याग ने हमारी जान बचाई'.

कहानी आगे कहती है कि व्यवसाई मित्र ने व्यवसाय छोड़कर अपने जन सेवक मित्र का रास्ता अपना लिया और उनके साथ मिल कर अपने संग्रहित धन से जन सेवा करने लगे.

Monday, February 02, 2009

हँसी के कुछ पल, सुखी जीवन

न्युओर्क पोस्ट में छपा एक विज्ञापन
एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका का पूरा सेट (४५ भाग) बिक्री के लिए - मूल्य १००० डालर 
उत्तर मिला - अब नहीं चाहिए, पिछले हफ्ते मेरी शादी हो गई. पत्नी को सब पता है. 
 
तलाक क्यों हुआ?
पत्नी ने पति से कहा, 'अब हम बीयर नहीं खरीद सकते, इस लिए तुम बीयर पीना छोड़ दो'.
आज्ञाकारी पति ने बीयर पीना छोड़ दिया. 
कुछ दिन बाद पत्नी ने ६५ डालर का मेकअप का सामन ख़रीदा. पति ने इस पर ऐतराज जताया.
पत्नी ने कहा, 'मैं मेकअप इसलिए करती हूँ कि तुम्हें अच्छी लगूं'.
पति बोला, 'मैं भी बीयर इसीलिए तो पीता हूँ'. 
पत्नी ने तलाक का मुकदमा दायर किया और जज ने पति से सहानुभूति दिखाते हुए तलाक तुंरत मंजूर कर दिया. 

विवाह की वर्षगाँठ मुबारक 
पत्नी, 'तुम गोल्फ इतना ज्यादा खेलते हो कि तुम्हें यह भी याद नहीं रहता कि हम शादीशुदा हैं'. 
पति, 'नहीं प्रिय मुझे याद रहता है, इसी दिन तो मैं अपने जीवन का एकमात्र गोल्फ का मेच जीता था'.  

विवाह का सही आधार 
पति और पत्नी एक पार्टी में कुछ मित्रों के साथ गप-शप कर रहे थे कि बात-चीत शादी पर सलाह देने पर शुरू हो गई. 
पत्नी ने कहा, 'नहीं हमें कभी ऐसी सलाह की जरूरत नहीं पड़ेगी. मेरे और मेरे पति के बीच में बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं. उन्होंने कमुनिकेशंस में डिग्री ली है और मैंने नाटक करने की कला में. वह बहुत अच्छा कम्युनिकेट करते हैं और मैं बहुत अच्छा सुनने का नाटक करती हूँ' 

Thursday, January 29, 2009

आतंकी हैवान हैं, उन्हें इंसानी अधिकार नहीं मिल सकते

हर व्यक्ति चाहता है कि उस का जीवन सुखी हो, उसका परिवार, नाते-रिश्तेदार, मित्र, पड़ोसी सब सुख से रहें. इस के लिए वह हर प्रयत्न करता है. परन्तु उस के यह सारे प्रयत्न बेकार हो जाते हैं जब किसी आतंकवादी की गोली या बम इन में किसी की जान ले लेता है. निर्दोष नागरिकों पर जान लेवा हमला करने वाला यह आतंकवादी क्या इंसान है? कोई इंसान ऐसा नहीं कर सकता. यह आतंकवादी इंसान के रूप में हैवान है. इन हैवानों को इस जमीन से मिटा देना हर इंसान का , हर समाज का, हर देश का, हर देश की सरकार का कर्तव्य है. लेकिन जब भी कभी पुलिस या सुरक्षा एजेंसियां किसी आतंकी हैवान को मारती हैं, छद्म मानव अधिकारवादी चिल्लाने लगते हैं, इन हैवानों के मानवाधिकारों की दुहाई देने लगते हैं. यह छद्म मानव अधिकारवादी भी एक तरह से हैवान ही हैं, जिन्हें निर्दोष इंसानों की चीख-पुकार सुनाई नहीं पड़ती, पर इन हैवानों के लिए उनके दिल में दर्द पैदा होता है. 

यह आतंकी हैवान जब इंसान ही नहीं हैं तब इनके मानवाधिकारों की बात कैसे की जा सकती है? मानव अधिकार मानवों के होते हैं, हैवानों के नहीं. सुप्रीम कोर्ट के जज, श्री अर्जीत पसायत, ने बड़े स्पष्ट शब्दों में यह बात कही है कि ऐके ४७ से निर्दोष लोगों की हत्या करने वाला आतंकी इंसान नहीं कहा जा सकता, और जब वह इंसान ही नहीं है तो उसके इंसानी अधिकारों की बात कैसे की जा सकती है? नीचे मैंने अखबार में इस विषय पर छपे समाचार की स्केंड फोटो दी है. आप उस पर क्लिक करके पूरी ख़बर पढ़ सकते हैं. 

Monday, January 12, 2009

सांई बाबा की शिक्षा

१. सबका मालिक एक

जाति, धर्म्, समुदाय, आदि व्यर्थ की बातो मे ना पड़ कर आपसी मतभेद भुलाकर आपस मे प्रेम और सदभावाना से रहना चाहिए क्योंकि सबका मलिक एक है ।

२ श्रधा और सबुरी

हमेशा श्रद्धा और विश्वास के साथ जीवन यापन करते हुए सबुरी (सब्र) के साथ जीवन व्यतीत करे !

३.मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है

कभी किसी धर्म की अवहेलना नहीं करनी चाहिए, अपितु सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए.  मानवता सबसे बड़ा  धर्म कर्म है!

४.जातिगत भेद भुला कर प्रेम पूर्वक रहना

जाति,समाज, भेद-भाव, आदि सब बाते ईश्वर ने नही बलकि इंसानों द्वारा बनाई गई हैं.  इसलिए ईश्वर की नजर मे ना तो कोई उच्च है और ना ही कोई निम्न. इसलिए जो काम ईश्वर को पसंद नही है वह मनुष्य को नहीं करना चाहिए अर्थात जात्-पात्, धर्म, समाज आदि मिथ्या बातो मे ना पड़ कर आपस मे प्रेमपूर्वक रह कर जीवन व्यतीत करना चाहिए!

५.गरीबो और लाचारों की मदद करना सबसे बड़ी पूजा है

सब के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए ! गरीबो और लाचारो की यथा सम्भव मदद करनी चाहिए और यही सबसे बडी पुजा है! क्योकि जो गरीबो,लचारो की मदद करता है ईश्वर उसकी मदद करता है!

६.माता-पिता, बुजुर्गो, गुरुजनों, बड़ों का सम्मान करना चाहिए
अपने से बड़ों का आदर सम्मान करना चाहीए! गुरुजनो बुजर्गो को सम्मान करने से उनका आर्शीवाद प्राप्त होता है जिससे हमारे जीवन की मुश्किलो मे सहायता मिलती है!

Friday, January 09, 2009

सुखी जीवन का रहस्य - कुछ तस्वीरें

लोग अपना जीवन सुखी बनाने के लिए न जाने क्या-क्या करते हैं, जबकि कुछ छोटी-छोटी बातें उन का जीवन सुखी बना सकती हैं. आइये सुखी जीवन के यह रहस्य इन तस्वीरों में देखें. 







गर्ल्ज्ग्रूप से साभार

 

Monday, January 05, 2009

सुखी जीवन के कुछ उपयोगी कथन

हर सच्चाई तीन मंजिलों से गुजरती है. पहले उसका मजाक उड़ाया जाता है. फ़िर उसका हिंसक विरोध कियाजाता है. अंत में, 'यही सच है', मानकर उसे स्वीकार कर लिया जाता है.
आर्थर  

जो लोग इतिहास की गलतियों से सीखते नहीं, उन्हें दोहराते हैं.
संत्याना 

जो प्रश्न करता है मूर्ख है पाँच मिनट के लिए, पर जो प्रश्न नहीं करता मूर्ख है हमेशा के लिए.
चाइनीज प्रोवर्ब 

मैं किसी को पढ़ा नहीं सकता, मैं केवल उन्हें सोचने को प्रोत्साहित कर सकता हूँ.
सोक्रेटेस  

मैं सुनता हूँ और भूल जाता हूँ. मैं देखता हूँ और याद रखता हूँ. मैं करता हूँ और समझ जाता हूँ. 
कंफुसिउस 
 
सब काम मुश्किल हैं आसान होने से पहले.
थॉमस फुलर 

मैंने देखा है कि मैं जितना ज्यादा काम करता हूँ मेरा भाग्य उतना ही उदित होता है.
थॉमस जेफरसन 

मैं अभी भी सीख रहा हूँ.
माइकेल एंजेलो 

जिसने सिद्ध किया है उस का विश्वास करो. एक एक्सपर्ट का विश्वास करो.
विर्गील, एनिड  

सीखना ऐसी दौलत है जो हमेशा और हर जगह आपका पीछे आती है.
चाइनीज प्रोवर्ब 

बिना उत्साह के कभी कोई मान कार्य नहीं किया गया.
राल्फ  वाल्डो  एमरसन 

हम ज्यादा काम करते हैं, हम और ज्यादा काम कर सकते हैं. 
विलियम  हेज्लेट 
 
इंसान का दिमाग जब एक नए विचार से विकसित हो जाता है, कभी वापस संकुचित नहीं होता. 
ऑलिवर वेन्डेल होल्म्स, जूनियर 

बुराई करने वाले क्या कहते हैं इस की चिंता मत करो क्योंकि कभी किसी बुराई  करने वाले ने किसी की मूर्ति नहीं बनाई. 
जीन   सिबेलिउस  

हमारे पीछे क्या है और हमारे आगे क्या है, यह सब कुछ नहीं उसके मुकाबले जो हमारे अन्दर है. 
ऑलिवर  वेन्डेल  होल्म्स 

हर समस्या जो मैंने हल की उस से भविष्य में आई समस्यायें हल करने में मदद मिली. 
रेने  देस्कार्तेस 

शिक्षा हमारी अज्ञानता की सिलसिलेवार खोज है.
विल डूरांट 

पढ़ने वाले बहुत हैं, सोचने वाले कम. 
हर्रिएत  मर्तिनौ 

आप अनुभव पैदा नहीं कर सकते, आपको अनुभव से गुजरना होता है. 
निर्णय के दिन का इंतज़ार मत करो, हर दिन निर्णय का दिन है. 
अलबर्ट कामस 

सारे इंसान ज्ञान की इच्छा रखते हैं.
शिक्षा बुढ़ापे के लिए सबसे अच्छा संसाधन है. 
अच्छी शुरुआत आधी सफलता है.
जो काम करने से पहले सीखना जरूरी है, उन्हें हम करके सीखते हैं.
अरिस्तोटिल 

Sunday, December 14, 2008

अपराध एक, पति को सजा, पत्नी को नहीं

आज अखबार में एक ख़बर पढ़ी - अगर एक विवाहित पुरूष किसी पर-स्त्री से शारीरिक सम्बन्ध रखता है तो उसे सजा होगी, पर अगर एक विवाहित स्त्री किसी पर-पुरूष से शारीरिक सम्बन्ध रखती है तो उसे सजा नहीं होगी, इस केस में भी सजा पुरूष को ही होगी. आप माने या न माने हमारे देश में यह कानून है. इस कानून के अनुसार व्यभिचार का दोषी केवल पुरूष होता है स्त्री नहीं. अगर यह भी साबित कर दिया जाय कि स्त्री ने ही पुरूष को व्यभिचार में फंसाया, तो भी सजा पुरूष को ही मिलेगी. 

सरकार इस कानून में बदलाव लाना चाहती है, पर महिला संगठन इस बदलाव के ख़िलाफ़ हैं. 

Wednesday, November 26, 2008

सह-अस्तित्व

आज समाज में चारों और विरोध और हिंसा का वातावरण है. सब जानते हैं कि सह-अस्तित्व के बिना सुखी जीवन सम्भव नहीं है, पर हम सारे वह काम करते हैं जिस से परस्पर विरोध और भय पैदा होता है. सह-अस्तित्व के दार्शनिक, व्यवहारिक और साधना पक्ष, तीनों से अधिकाँश लोग परिचित हैं पर उस पर अमल नहीं कर पाते. आइये देखें यह तीनों पक्ष क्या कहते हैं:

दार्शनिक पक्ष - प्रत्येक बस्तु में अनन्त विरोधी युगल हैं. वे सब एक साथ रहते हैं.

व्यवहार पक्ष - दो विरोधी विचार वाले एक साथ रह सकते हैं. तुम भी रहो और मैं भी रहूँ, यही बात हमारे जगत का सौन्दर्य है. इसलिए विरोधी को समाप्त करने की बात मत सोचो. सीमा का निर्धारण करो. तुम अपनी सीमा में रहो, वह अपनी सीमा में रहे. सीमा का अतिक्रमण मत करो.

साधना पक्ष - विरोध हमारी मानसिक कल्पना है. सह-अस्तित्व में वही बाधक है. यदि हम भय और घ्रणा के  संवेग का परिष्कार करें तो सह-अस्तित्व की बाधा समाप्त हो सकती है. संवेग-परिष्कार के लिए सह-अस्तित्व की अनुप्रेक्षा उपयोगी है.

परस्पर प्रेम और आदर के साथ मिल-जुल कर रहने से ही सुख जीवन का आनंद लिया जा सकता है.  

(लोकतंत्र - नया व्यक्ति नया-समाज से साभार) 

Monday, November 24, 2008

ईश्वर में अविश्वास जीवन में दुःख की श्रष्टि करता है

कर्मों के अनुसार फल भुगतानेवाले सर्वव्यापी परमात्मा की सत्ता न मानने से मनुष्य में उच्श्रन्ख्लता बढ़ती है.  उच्श्रंखल मनुष्य में झूट, कपट, चोरी-जारी, हिंसा आदि पाप कर्मों  की एवं काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार आदि अवगुणों की वृद्धि होकर उस का पतन हो जाता है, जिसके परिणाम में वह और महा दुखी बन जाता है. 

ईश्वर को न मानने से ईश्वर के तत्वज्ञान की खोज नहीं हो सकती और तत्वज्ञान की खोज के बिना ईश्वर के तत्व का ज्ञान नहीं होता और ज्ञान बिना कल्याण नहीं हो सकता, जीवन सुखी नहीं हो सकता.

ईश्वर को न मानने से कृतघ्नता का दोष आ जाता है, क्योंकि जो मनुष्य सर्व संसार के उत्पन्न तथा पतन करने वाले सबके सुह्रद उस परमपिता परमात्मा को नहीं मानते, वह यदि अपने को जन्म देने वाले माता-पिता को भी न मानें तो क्या आश्चर्य है? जन्म से उपकार करने वाले माता-पिता को न मानने वाले के समान दूसरा कौन कृतघ्न है? 

ईश्वर को न मानने से मनुष्य की आध्यात्मिक स्थिति नष्ट हो जाती है और उस में पशुपन आ जाता है. संसार में जो लोग ईश्वर को नहीं मानने वाले हैं, गौर करके देखने से उनमें यह बात प्रत्यक्ष देखने में आती है. 

ईश्वर के अस्तित्व में प्रमाण पूछना कोई आश्चर्यजनक बात या बुद्धिमता नहीं है. इस विषय में प्रश्न करना साधारण है. स्थूल बुद्धि से समझ में न आने वाले विषय में समझदार मनुष्यों को भी शंका हो जाती है, फ़िर साधारण मनुष्यों की तो बात ही क्या है? परन्तु बिचारने की बात है कि जो परमात्मा स्वतः प्रमाण है और जिस परमात्मा से ही सब प्रमाणों की सिद्धि होती है उस के विषय में प्रमाण पूछना आश्चर्य भी है, जैसे किसी मनुष्य का अपने ही सम्बन्ध में शंका करना की 'मैं हूँ या नहीं' व्यर्थ है, बैसे ही ईश्वर के अस्तित्व के विषय में पूछना व्यर्थ है. 

(अमूल्य शिक्षा से साभार) 

Wednesday, November 19, 2008

ईश्वर में विश्वास सुखी जीवन का आधार है

ईश्वर बिना ही कारण सब पर दया करता है. प्रत्युपकार के बिना न्याय करता है और सब को समान समझ कर सब से प्रेम करता है. इसलिए उस को मानना कर्तव्य है और कर्तव्य का पालन करना ही मनुष्य का मनुष्यत्व है. 

ईश्वर के मानने से उसकी प्राप्ति के लिए उसके गुण, प्रेम, प्रभाव को जानने को खोज होती है और उसके नाम का जप, स्वरुप का ध्यान, गुणों के श्रवण-मनन की चेष्टा होती है, जिससे मनुष्य के पापों, अवगुणों एवं दुखों का नाश होकर उसे परमानन्द की प्राप्ति हो जाती है. 

अच्छी प्रकार से समझ कर ईश्वर को मानने से मनुष्य के द्वारा किसी प्रकार का दुराचार नहीं हो सकता. जिन मनुष्यों में दुराचार देखने में आते हैं, वे वास्तव में ईश्वर को मानते ही नहीं हैं. झूठे ही ईश्वरवादी बने हुए हैं.

सच्चे ह्रदय से ईश्वर को माननेवालों की सदा से जय होती आई है. ध्रुव-प्रह्लदादि जैसे अनेकों ज्वलंत उदहारण शाश्त्रों में भरे हैं. वर्तमान में भी सच्चे ह्रदय से ईश्वर को मान कर उसकी शरण लेने  वालों की प्रत्यक्ष उन्नति देखी जाती है. 

सम्पूर्ण श्रुति, स्मृति आदि शास्त्रों की सार्थकता भी ईश्वर के मानने से ही सिद्ध होती है, क्योंकि सम्पूर्ण शाश्त्रों का ध्येय ईश्वर के प्रतिपादन में ही है.  

Tuesday, November 18, 2008

मन चंगा तो कठौती में गंगा

यह एक कहावत है जिसका अर्थ है कि अगर मन सुखी है तो घर के पानी में नहा कर भी गंगा में नहाने का पुन्य प्राप्त हो सकता है. कहा जाता है कि संत कवि रैदास के जीवन में घटी एक घटना के बाद से ही यह कहावत प्रचलित हो गयी. एक बार एक पर्व के अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे। रैदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो वे बोले, गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किन्तु एक व्यक्ति को जूते बनाकर आज ही देने का मैंने वचन दे रखा है। यदि मैं उसे आज जूते नहीं दे सका तो वचन भंग होगा। गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहाँ लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा ? मन जो काम करने के लिए अन्त:करण से तैयार हो वही काम करना उचित है। मन सही है तो इसे कठौते के जल में ही गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है। 

रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया। वे स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है।
    "कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा। 
     वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।"

यह भी कहा जाता है कि कुछ ईर्ष्यालु लोगों ने रैदास की शिकायत काशी नरेश से की, कि रैदास गंगा जल और अपनी कठौती में भरे गंदे पानी को एक बताते हैं, और इस से धार्मिक जनों की भावनाएं आहत होती हैं. काशी नरेश संतों का बहुत सम्मान करते थे. उन्होंने कहा कि वह ख़ुद इस बात की जांच करेंगे. वह रैदास जी के पास गए और इस शिकायत के बारे में उनका स्पष्टीकरण माँगा. रैदास ने कहा कि राजा ख़ुद ही देख लें. जब राजा ने कठौती में झाँका तो उन्हें माँ गंगा के दर्शन हुए. राजा ने रैदासजी के चरण स्पर्श किए और अपने महल को लौट गए. 

Sunday, November 09, 2008

लालच

जीवन एक वृक्ष है. 
प्रेम और संतोष से सींचिये उसे. 
लालच विष समान है.
धीरे-धीरे जलाता है उसे.  

Thursday, November 06, 2008

सेहत

पाँव गरम, 
पेट नरम, 
सर ठंडा,
यह है,
असली सेहत का फंडा.

Wednesday, November 05, 2008

क्या डर-डर का जीना सुखी जीवन है?

आज पूरे देश में डर का माहौल है. हर आदमी डरा हुआ है. आम आदमी तो डर-डर कर जीता ही है, खास आदमी भी बिना सुरक्षा के बाहर नहीं निकलता. जितना खास आदमी, उतनी खास सुरक्षा. 

लोग बाहर तो डरते ही हैं, घर के अन्दर भी डरते हैं. न जाने कौन घर में आकर मार जाए. घर से डरते-डरते बाहर निकलते हैं. घर वाले यही प्रार्थना करते रहते हैं कि सही-सलामत वापस आ जाएँ. बीच-बीच में फ़ोन करके कुशलता पूछते रहते हैं. हर आदमी का यही हाल है. 

मुसलमान हिंदू से डरता है, ईसाई हिंदू से डरता है - बहुसंख्यक हमें मार डालेंगे. हिंदू आतंकवादियों से डरता है. सब मिल कर पुलिस से डरते हैं. कोई किसी पर भरोसा नहीं करता. 

अब आप बताइये, क्या इस डर और अविश्वास के माहौल में जीवन सुखी हो सकता है? सुखी जीवन के लिए जरूरी है, परस्पर प्रेम, आदर और विश्वास. रोटी, कपड़ा और मकान भी जरूरी हैं सुखी जीवन के लिए पर अब ज्यादा जरूरी हैं परस्पर प्रेम, आदर और विश्वास. इन के बिना सब कुछ होते हुए भी जीवन सुखी नहीं है. इस लिए मेरे देशवासियों परस्पर प्रेम करो, एक दूसरे का आदर करो, एक दूसरे पर विश्वास करो. आज के युग में यही हे सुखी जीवन की कुंजी. 

Saturday, November 01, 2008

कुछ सही परिभाषाएं

बड़ा आदमी कौन है?
जो किसी को भी अपने से छोटा नहीं समझता.

दलित कौन है?
जो ख़ुद को दूसरों से बड़ा समझता है और उन का हक़ छीनकर उन पर अत्त्याचार करता है.

धर्मान्ध कौन है?
जो अपना धर्म तो नहीं समझता पर दूसरों के धर्म में गलतियाँ निकालता है.

नेता कौन है?
यह इस युग का रावण और कंस है.

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

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सुखी जीवन का रहस्य

दूसरों के सुख में सुखी होंगे तो आपका अपना जीवन सुखी होगा